Prabhavita Ka Niyam:प्रभाविता के नियम परीक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण टॉपिक है. अक्सर प्रभाविता के नियम से सम्बंधित प्रश्न जैसे कि प्रभाविता के नियम का महत्व आदि प्रैक्टिकल परीक्षा के दौरान प्रश्न पूछे जाते है. अतः परीक्षार्थियों को प्रभाविता के नियम से जुड़े सभी सम्बंधित प्रश्नों का भलीभांति तैयार कर लेना चाहिए.
Prabhavita Ka Niyam
एक संकर संकरण के प्रयोग में जब एक ही लक्षण के दो विरोधी गुणों वाले पौधों के बीच संकरण कराया जाता हैं , तो प्रथम पीढ़ी (F1) में वही गुण प्रदर्शित होता हैं जो प्रभावी होता हैं | इसी को प्रभाविता का नियम कहते हैं | इस क्रिया में जो गुण या कारक प्रकट होता हैं या जो दूसरे गुण को प्रदर्शित नही होने देता , उसेप्रभावी गुण या कारक (Dominant factor) कहते हैं | जबकि वह गुण जो प्रकट नही होता , उसे अप्रभावी गुण या कारक (Recessive factor) कहते हैं |
उदहारण – मेंण्डल ने नियम की पुष्टि हेतु जब मटर के समयुग्मजी लम्बे (TT) पौधे तथा समयुग्मजी बौने (tt) पौधे के बीच संकरण कराया जाता हैं तो संकरण के फलस्वरूप प्रथम पीढ़ी (F1) में जो पौधे प्राप्त हुए वे सभी विसमयुग्मजी लम्बे (Tt) थे | जो प्रभावित के नियम की पुष्टि करता हैं | तथा F1 पीढ़ी में लम्बेपण का लक्षण प्रदर्शित हुआ जिसे प्रभावी गुण या लक्षण कहा गया जबकि जो लक्षण प्रदर्शित नही हुआ अर्थात बौनेपन के लक्षण को अप्रभावी गुण या लक्षण कहा गया |
इससे स्पष्ट होता हैं कि प्रत्येक जीन में अनेक जोड़ी एेलील्स होते हैं तथा उनमे एक प्रभावी एवं दूसरा अप्रभावी होता हैं | प्रभावी विशेषता समयुग्मजी (TT) और विसमयुग्मजी (Tt) दोनों परिस्थितियों में प्रकट होती हैं | जबकि अप्रभावी विशेषता केवल समयुग्मजी (tt) अवस्था में ही प्रकट होती हैं |
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