Ushmagatiki Ka Pratham Niyam:ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम परीक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण टॉपिक है. अक्सर ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम से सम्बंधित प्रश्न जैसे कि ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम के प्रकार आदि प्रैक्टिकल परीक्षा के दौरान प्रश्न पूछे जाते है. अतः परीक्षार्थियों को ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम से जुड़े सभी सम्बंधित प्रश्नों का भलीभांति तैयार कर लेना चाहिए.
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Ushmagatiki Ka Pratham Niyam
इस प्रथम नियम के अनुसार, यदि किसी ऊष्मागतिकी निकाय को ऊष्मा दी जाए तो इस ऊष्मा का कुछ भाग निकाय की आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि करने में खर्च हो जाएगा। तथा ऊष्मा का शेष भाग ऊष्मागतिकी निकाय द्वारा कार्य करने में व्यय हो जाएगा।
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण नियम का ही दूसरा रूप है। इसके अनुसार ऊष्मा भी ऊर्जा का ही रूप है। अत: इसका रूपांतरण तो हो सकता है, किंतु उसकी मात्रा में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जूल इत्यादि ने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि इन दो प्रकार की ऊर्जाओं में रूपांतरण में एक कैलोरी ऊष्मा 4.18 व 107 अर्ग यांत्रिक ऊर्जा के तुल्य होती है इंजीनियरों का मुख्य उद्देश्य ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतर करके इंजन चलाना होता है। प्रथम नियम यह तो बताता है कि दोनों प्रकार की ऊर्जाएँ वास्तव में अभिन्न हैं, किंतु यह नहीं बताता कि एक का दूसरे में परिवर्तन किया जा सकता है अथवा नहीं। यदि बिना रोक-टोक ऊष्मा का यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तन संभव हो सकता, तो हम समुद्र से ऊष्मा लेकर जहाज चला सकते। कोयले का व्यय न होता तथा बर्फ भी साथ साथ मिलती। अनुभव से यह सिद्ध है कि ऐसा नहीं हो सकता है
अर्थात किसी निकाय को Q ऊष्मा दी जाए तो ऊष्मा का कुछ भाग, आंतरिक उर्जा में वृद्धि (∆U) में तथा शेष भाग कार्य W करने में व्यय हो जायेगा, तोयह ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम (first law of thermodynamics in Hindi) का गणितीय रूप है। ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का ही एक रूप है।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के भौतिक महत्व
इसकी निम्नलिखित तीन तथ्य हैं-
ऊष्मा ऊर्जा का ही एक रूप है।
ऊष्मागतिकी निकाय में ऊर्जा संरक्षित रहती है।
प्रत्येक ऊष्मागतिकी निकाय में आंतरिक ऊर्जा विद्यमान होती है यह आंतरिक ऊर्जा केवल ऊष्मागतिकी निकाय की अवस्था पर निर्भर करती है।
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